Guru Nanak Birth Date : इस वर्ष सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का 553वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। गुरु नानक जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए ये दिन बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु थे, इसलिए इस दिन को गुरु पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। गुरु नानक देव के उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। आइए जानते हैं नानक देव से जुड़ी कुछ अनोखी बातें।
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पंजाब के तलवंडी में हुआ जन्म | Guru Nanak Birth Date
Guru Nanak Birth Date : गुरु पर्व या प्रकाश पर्व गुरु नानक जी के जन्म की खुशी में मनाया जाता हैं। सिखों के प्रथम गुरु, नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नाम की जगह पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में है। इस जगह का नाम ही गुरु नानक देवजी के नाम पर पड़ा। यहां बहुत ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा ननकाना साहिब भी है, जो सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। बता दें कि इस गुरुद्वारे को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। शेर-ए पंजाब नाम से प्रसिद्ध सिख साम्राज्य के राजा महाराजा रणजीत सिंह ने ही गुरुद्वारा ननकाना साहिब का निर्माण करवाया था।
2022 गुरु नानक जयंती कब है | Guru Nanak Birth Date
Guru Nanak Birth Date : सिख धर्म में गुरु नानक जयंती बहुत बड़ा त्यौहार है। हिंदू धर्म में दीपावली की तरह ही सिख धर्म में गुरु नानक जयंती मनाई जाती है।
कहते हैं दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन ही गुरु नानक जयंती मनाई जाती है।
इस बार गुरु पर्व 8 नवंबर 2022, मंगलवार को मनाया जाएगा।
गुरु नानक जयंती को गुरु पर्व, प्रकाश पर्व, गुरु पूरब भी कहा जाता है। इस दिन सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। गुरु नानक देव जी ने ही सिख धर्म की स्थापना की थी।
देशभर में ये पर्व काफी धूम-धाम से मनाया जाता है।
कई महीनों पहले से ही सिख समाज जुलूस और प्रभात फेरी की तैयारियों में जुट जाते हैं।
धूम धाम से मनाते है गुरु पर्व
गुरु पर्व (guru parav) के दिन सुबह प्रभात फेरी निकाली जाती है, गुरुद्वारे जाकर मत्था टेकते हैं, वाहे गुरू का जाप करते हैं और भजन कीर्तन के साथ साथ शबद आदि किए जाते हैं।
ढोल-मंजीरों के साथ इस प्रभात फेरी की शुरुआत होती है। यही नहीं, कई जगह जुलूस का आयोजन भी किया जाता है। बड़े पैमाने पर सिख समाज की तरफ से लंगर का आयोजन भी होता है। गुरुद्वारों में शबद-कीर्जन और वाक होते हैं। समाज के लोग अपनी श्रद्धा अनुसार गुरुद्वारों में सेवा करते हैं।
गुरु नानक देव की जयंती के मौके पर चारों ओर दीप जला कर रोशनी की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार गुरु नानक ने समाज में बढ़ रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने का काम किया था। साथ ही साथ लोगों के जीवन में प्रकाश भरने का काम कर उन्हें इन बुराइयों और कुरीतियों को त्याग करके नई राह दिखाई थी। इसके लिए नानक देव जी ने दूर-दूर तक यात्राएं की और पारिवारिक सुख का त्याग कर दिया।
नानक देव से जुड़ी कुछ अनोखी बातें
माता-पिता थे इस बात से चिंतित
गुरु नानक देव जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब लोग अंधविश्वास और आडंबरों को ज्यादा मानते थे। बचपन से ही गुरु नानक जी का मन आध्यात्मिक चीजों की तरफ ज्यादा था।
बचपन में गुरु नानक देव जी काफी शांत प्रवृति के व्यक्ति थे। हमेशा आंखें बंद करके ध्यान में लगे रहते थे। नानक देव जी के प्रखर बुद्धि के लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगे थे। हमेशा चिंतन और ध्यान में लगा देख घर में माता-पिता को चिंता सताने लगी थी। इस कारण उन्हें गुरुकुल में भेज दिया गया, लेकिन वहां भी वे ज्यादा समय नहीं रहे । गुरु नानक के प्रश्नों का उत्तर अध्यापक के पास भी न था। और उनके प्रश्नों से तंग आकर अध्यापक उन्हें वापस घर छोड़ गए और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भगवान ने उन्हें पहले से ही ज्ञान देकर धरती पर भेजा है।
आडंबरों का घोर विद्रोह
गुरु नानक जी हिन्दू परिवार में जन्मे जो सभी धर्मों का व्यापक रूप से अध्ययन किया जिसकी वजह से वो बचपन से ही आध्यात्मिक और ज्ञानी हो गए थे। वो किसी भी तरह के अंधविश्वास को नहीं मानते थे और आडंबरों का घोर विद्रोह करते थे। गुरु नानक जी के बचपन के कई किस्से बहुत प्रचलित हैं।
बचपन से ही थे विद्रोही
ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक देव जब 11 साल के थे तो उन्हें जनेऊ पहनने को कहा गया। उस समय इस उम्र के सारे हिन्दू लड़के पवित्र जनेऊ पहनना शुरू कर देते थे लेकिन गुरु नानक ने जनेऊ पहनने से साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि लोगों की इस तरह की परंपराओं को मानने की बजाय अपने ज्ञान और गुणों को बढ़ाना चाहिए।
मानव सेवा में बीता जीवन
16 साल की आयु में ही उनका विवाह करवा दिया गया और कुछ समय बाद उनके दो बच्चे भी हुए। परिवार होने के बावजूद नानक जी का मन कभी भी घर गृहस्थी में नहीं लगा और वह हमेशा मानव सेवा ही करते रहे। गुरु नानक देव ने बिना सन्यास धारण किए अध्यात्म की राह को चुना था। उनका मानना था कि अध्यात्म की राह पर चलने के लिए व्यक्ति को सन्यासी बनने और अपने कर्तव्यों को अधूरा छोड़ने की जरूरत नहीं है।
जीवन में आध्यात्मिक यात्रा
नानक साहब जी ने 30 सालों तक भारत, तिब्बत और अरब समेत कई जगहों पर आध्यात्मिक यात्रा की। इस दौरान उन्होंने सारे धर्मों के बारे में बहुत अध्ययन किया और गलत बातों के प्रति लोगों को जागरुक करना भी शुरू किया। नानक ने अपने विद्रोही विचारों से साधुओं और मौलवियों पर सवाल उठाना शुरू कर किया। उनका कहना था कि कोई भी रस्म-रिवाज़ निभाने के लिए पुजारी या मौलवी की जरूरत नहीं है क्योंकि ईश्वर एक है और हर इंसान ईश्वर तक स्वंय पहुंच सकता है।
अंधविश्वास के थे कट्टर विरोधी
नानक साहब जी अंधविश्वास और दिखावे के कट्टर विरोधी थे और धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ हमेशा अपनी आवाज उठाते थे। नानक लोगों के अंतर्मन में बदलाव लाना चाहते थे। वो आजीवन लोगों यह समझाते रहे कि लोभ, लालच बुरी बलाएं हैं। वो लोगों को प्रेम, एकता, समानता और भाई-चारा का संदेश देते थे।
आध्यात्म तथा धार्मिक उपदेश में बीता जीवन
गुरु नानक साहब जी ने कुछ समय के लिए मुंशी का कार्य भी किया लेकिन उनका मन इस काम में भी बहुत दिनों तक नहीं लगा। वो अपना पूरा समय आध्यात्मिक विषयों के अध्ययन में लगाते थे। नानक का मानना था कि आध्यात्म की राह पर सिर्फ चिंतन के जरिए ही आगे बढ़ा जा सकता है। उनका पूरा जीवन धार्मिक उपदेश में बीता।
पंजाब के करतारपुर में बिताए अंतिम दिन
गुरु नानक देव जी ने अपने अंतिम के दिन पंजाब के करतारपुर में लोगों को शिक्षा देते हुए गुजारे। उनका उपदेश सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। उनकी शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में अमर किया गया, जिसे सिख धर्म के लोग गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में मानते हैं। 22 सितम्बर 1539 ई. को इनका परलोक वास हुआ।
नानक देव जी द्वारा धार्मिक सुधार
गुरु नानक देव जी ने कई तरह के धार्मिक सुधार किए जिनमें से एक जाति व्यवस्था को खत्म करना था। उन्होंने लोगों के मन में ये भावना स्थापित की कि हर इंसान एक है, चाहे वो किसी भी जाति या लिंग का हो। गुरू नानक जी को विश्व भर में सांप्रदायिक एकता, सच्चाई, शांति, सदभाव के ज्ञान को बांटने के लिए याद किया जाता है।