Janmashtami vrat 2022 :- कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण जो की विष्णु के आठवे अवतार थे उनका जनमोत्सव है। जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीविष्णु ने अपना अवतार मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के रुप में भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था।
भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अपने अत्याचारी मामा कंस तथा असुरों का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अधर्म के ऊपर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है। इसलिये भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है। कृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष व्रत रखते हैं।
देवकीनंदन के जन्मोत्सव पर पूरे भारत में उत्सव और उल्लास का माहौल रहता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना बहुत लाभदायक माना जाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी के नाम भी जाना जाता है। ग्रेगोरियन पंचांग के अनुसार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अक्सर अगस्त और सितंबर के महीने में पड़ती है, यह तिथि हर वर्ष बदलती रहती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, कई बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दो दिन पड़ती है। यह दो तिथियां स्मार्त संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय हैं।
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार वैष्णवे लोग हैं, जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय में बतलाए गए नियमों के अनुसार विधिवत दीक्षा ली है। ये लोग अधिकतर अपने गले में कण्ठी माला पहनते हैं और मस्तक पर विष्णुचरण का चिन्ह (टीका) लगाते हैं। इन वैष्णव लोगों के अलावा सभी लोगों को धर्मशास्त्र में स्मार्त कहा गया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि – वे सभी लोग, जिन्होंने विधिपूर्वक वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली है, स्मार्त कहलाते हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से सभी दुख और तकलीफें दूर हो जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है।
आइए जानते हैं कि 2022 में जन्माष्टमी कब है व जन्माष्टमी 2022 की तारीख, मुहूर्त व इतिहास तथा मानने की विधि।
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा
द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा – न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा।
वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैं इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब मैं बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।
कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुँच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।
2022 में जन्माष्टमी कब है (Janmashtami vrat 2022)
श्रीकृष्ण का जन्म भगवान श्रीविष्णु के आठवें अवतार के रुप में हुआ था। इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रुप में मनाते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने असुरों और मामा कंस के आतंक से जन मानस को बचाने के लिए अवतार लिया था। इस साल 2022 में जन्माष्टमी का त्योहार 18 अगस्त दिन गुरुवार को है।
कृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त (Janmashtami vrat 2022)
भाद्र मास के दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र लगता है तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है। जानते हैं 2022 में कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami vrat 2022) के दिन का शुभ मुहूर्त
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तिथि :- 18 अगस्त 2022
अष्टमी तिथि प्रारम्भ :- अगस्त 18, 2022 को 09:20 pm बजे से
अष्टमी तिथि समापन :- अगस्त 19, 2022 को 10:59 pm बजे तक
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ :- अगस्त 20, 2022 को 01:53 am बजे से
रोहिणी नक्षत्र समापन :- अगस्त 21, 2022 को 04:40 am बजे तक
निशित काल :- 24:03:00 से 24:46:42 तक
पारण– 19 अगस्त 10 बजके 59 pm मिनट के बाद
दही हाण्डी शुक्रवार, अगस्त 19, 2022 को
- अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है।
- अष्टमी केवल दूसरे ही दिन आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
- अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र का योग एक ही दिन हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी नक्षत्र से युक्त दिन में किया जाता है।
- अष्टमी दोनों दिन आधी रात को विद्यमान हो और दोनों ही दिन अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त रहे तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
- अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में दोनों दिन रोहिणी नक्षत्र का योग न हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।
- अगर दोनों दिन अष्टमी आधी रात को व्याप्त न करे तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन होगा।
विशेष: उपरोक्त मुहूर्त स्मार्त मत के अनुसार दिए गए हैं। वैष्णवों के मतानुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami vrat 2022) अगले दिन मनाई जाएगी। ध्यान रहे कि वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय मत को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं।
जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि (Janmashtami vrat 2022)
- इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।
- इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।
- उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।
- हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान (छिड़ककर) कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएँ। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।
- साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।
- यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है।
- कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण के बाल रुप की माखन, मिश्री, गंगाजल पंचामृत से पूजा की जाती है और व्रत-उपवास कर श्रीकृष्ण के बताए हुए धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
- कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सनातन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन कृष्ण भगवान के भक्त व्रत रखते हैं तथा उनकी विधिवत तरीके से पूजा करते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा-भाव से भगवान श्री कृष्ण की पूजा-आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
- कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से कुंडली में चंद्र की स्थिति मजबूत होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी इस दिन व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण को झूला झुलाया जाता है, ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण को झूला झुलाने से भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों के मनवांछित फल पूरा करते हैं।
जन्माष्टमी दिन क्या होता है
- इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है।
- श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियाँ सजाई जाती हैं।
- भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है।
- स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।
जन्माष्टमी पर करें गाय की सेवा, मिलेगा भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद
- गाय को प्रतिदिन चारा खिलाएं, अगर ऐसा करना आपके लिए संभव नहीं है तो जन्माष्टमी पर गाय को अवश्य चारा खिलाएं।
- अपने घर में बनी पहली रोटी प्रतिदिन गाय को जरुर खिलाएं। ऐसा करने से आपको गऊ माता के आशीर्वाद के साथ-साथ भगवान कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं का भी आशीर्वाद मिलता है।
- गाय को गुड़ खिलाएं। गुड खाने से गऊ माता बहुत प्रसन्न होती है। और आपको आशीर्वाद देती है।
- जहां गाय प्रसन्न रहती है, वहां नकारात्मक ऊर्जा अपने आप नष्ट हो जाती है। गाय को जन्माष्टमी के दिन चना जरुर खिलाएं।
- गुड़ के साथ चना गाय का सर्वोत्तम आहार माना जाता है। इसलिए अपनी क्षमता के अनुसार जन्माष्टमी पर गाय को गुड़ और चना खिलाएं।
- जन्माष्टमी के दिन अगर संभव हो सके तो गाय को स्नान जरुर कराएं। गाय को स्नान कराने का पुन्य मानों भगवान कृष्ण के साथ-साथ 33 कोटि देवी-देवताओं को स्नान कराने के पुन्य के समान माना गया है।
Disclaimer:- इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। स्टोर ऑफ ज्ञान इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।