- भारत के सबसे बेहतरीन कमांडो में एक है मार्कोस कमांडो (MARCOS Commando), जो भारतीय नौसेना (Indian Navy) का एक विशेष बल हैं।
- यह आतंकवाद से निपटने के लिए पानी के नीचे और सब-एंटी-पाइरेसी ऑपरेशन में माहिर होते हैं।
- मार्कोस कमांडो (MARCOS Commando) सिर्फ पानी में ही नहीं बल्कि जमीन पर भी अपने ऑपरेशन को अंजाम देते हैं।
- भारत की मार्कोस कमांडो सबसे कुशल कमांडो में से एक मानी जाती है।
- सबसे कुशल बनने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है तब वो मार्कोस बनते हैं।
- ये हर तरह के ऑपरेशंस में काम करते हैं लेकिन समुंद्री ऑपरेशन में इन्हें महारथ हासिल होती है।
- इसमें 1000 सैनिकों में से कोई एक ही MARCOS Commando बन पाता है।
- श्रीलंका में ऑपरेशन पवन (1987), करगिल युद्ध (1999), मुंबई में 26/11 के दौरान ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो (2008) समेत कई अभियान को मार्कोस कमांडो ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।
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कब हुआ था गठन
- भारतीय नौसेना की इस स्पेशल यूनिट (MARCOS Commando) का गठन 1987 में किया था, समुद्री लुटेरों और आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देने के साथ ही साथ समुद्री ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए इनका गठन किया गया है।
- बता दें कि मार्कोस का नाम पहले मरीन कमांडो फोर्स (एमसीएफ) हुआ करता था। मार्कोस को दुनिया की बेहतरीन यूएस नेवी सील्स की तर्ज पर विकसित किया गया है।
- इसका मोटो है : The Few, The Fearless।
MARCOS Commando की खासियत
- मार्कोस नौसेना के स्पेशल मरीन कमांडोज हैं और किसी भी स्पेशल ऑपरेशन के लिए इन्हें बुलाया जाता है।
- ये समुद्री ऑपरेशंस में इतने माहिर होते हैं कि पानी के अंदर ही तैरते हुए विरोधी तटों तक पहुंच सकते हैं।
- ये समदंर की सतह से 55 मीटर नीचे 15 मिनट तक बिना ऑक्सिजन उपकरण के रह सकते हैं और लड़ भी सकते हैं।
- कई तो ऐसे हैं, जो आधे घंटे तक इन हालात से जूझ सकते हैं। फिर चाहे वह बर्फ से लबाबल वुलर झील हो या फिर अरब सागर।
- मार्कोस कमांडो जल-थल-नभ में एक जैसी दक्षता के साथ कोई भी ऑपरेशन अंजाम दे सकते हैं।
- मार्कोस हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में माहिर होते हैं।
- ये दुनियाभर की स्पेशल फोर्स के साथ कई संयुक्त अभ्यास करते हैं |
- इनके पास जो हथियार होते हैं वो दुनिया के सबसे बेहतर हथियारों में से होते हैं।
- बेहतरीन राइफल्स में से एक इजरायली TAR-21 है जो मार्कोस इस्तेमाल करते हैं।
- ये खास प्रकार के हथियार जैसे कि हेकलर एंड कोच एमपी 5 सब मशीनगन, एसआईजी सॉयर पी 226 और ग्लॉक 17 पिस्तौल और ड्रगानोव और गैलिल स्नाइपर राइफल और ओएसवी -96 अर्ध-ऑटो भारी कैलिबर एंटी मटेरियल राइफल शामिल हैं।
- हथियारों के अलावा, वे गुप्त पानी के संचालन के लिए दो मानव उप-भाग, इतालवी CE-2F / X100 भी संचालित करते हैं।
MARCOS Commando के लिए चयन प्रक्रिया
- MARCOS Commando का हिस्सा बनने के लिए सबसे पहले भारतीय नौसेना ज्वॉइन करना पड़ता है।
- इसके बाद साल में कमांडो के दो कोर्स होते हैं। इसके लिए सेना के जवानों से आवेदन मांगा जाता है।
- मार्कोस कमांडो बनने के लिए 20 साल के युवाओं का चयन किया जाता है। पूर्व-प्रशिक्षण चयन प्रक्रिया में तीन दिवसीय शारीरिक फिटनेस और योग्यता परीक्षा शामिल होती है जिसमे लगभग 80% आवेदकों को स्क्रीनिंग करके बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
- इसके बाद 5 सप्ताह की एक कठिन परीक्षा का दौर शुरू होता है जो कि इतना कष्टकारी होता है कि लोग इसकी तुलना नर्क से भी करते हैं।
- इस प्रक्रिया में ट्रेनी को सोने नही दिया जाता है, भूखा रखा जाता है और कठिन परिश्रम करवाया जाता है।
- इस चरण में जो लोग ट्रेनिंग छोड़कर भागते नही हैं उनको वास्तविक ट्रेनिंग के लिए चुना जाता है।
- इसके बाद ही जवानों को वह ट्रेनिंग मिलती है, जो उन्हें विश्व का सबसे खास कमांडो बनाती है।
- हर कोई मार्कोस नहीं बन सकता इसके लिए स्पेशल लोगों का चयन किया जाता है। मार्कोस के सेलेक्शन के लिए मानदंड काफी मुश्किल होता है।
- अगर मार्कोस के लिए चुन भी लिए जाते हैं तो उन्हें कठोर ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है जो लगभग 2.5 से 3 साल तक चलती है।
MARCOS Commando के लिए ट्रेनिंग
- जैसे भारतीय थल सेना में कई रेजिमेंट हैं, जिनसे नाम से दुश्मन कांपता है…वैसे ही भारतीय नौसेना में मार्कोस कंमाडो हैं जो अकेले दुश्मन के दांत खट्टे कर देते हैं। मार्कोस चाहे आतंकवाद से जंग लड़नी हो या फिर समुंदर की गहराई में कोई ऑपरेशन को अंजाम देना हो, यह अपनी विशेष ट्रेनिंग की वजह से दुश्मन के मंसूबों को नाकाम कर देते हैं।
- कई लोग तो इस ट्रेनिंग को छोड़कर भी भाग जाते हैं, जो इस फेज को पार कर जाते हैं, वे वास्तविक ट्रेनिंग के लिए चुने जाते हैं। वास्तविक ट्रेनिंग 3 सालों का होता है।
आगे के प्रशिक्षण में शामिल हैं
- ओपन और क्लोज सर्किट डाइविंग
- उन्नत हथियार कौशल, विध्वंस, धीरज प्रशिक्षण और मार्शल आर्ट सहित बुनियादी कमांडो कौशल
- हवाई प्रशिक्षण
- खुफिया प्रशिक्षण
- पनडुब्बी शिल्प का संचालन
- अपतटीय संचालन
- आतंकवाद विरोधी अभियान
- पनडुब्बियों से संचालन
- स्काइडाइविंग
- विभिन्न विशेष कौशल जैसे भाषा प्रशिक्षण, सम्मिलन विधि, आदि।
- विस्फोटक आयुध निपटान तकनीक
क्लियरेंस डाइविंग: समंदर की सतह से 55 मीटर नीचे बिना ऑक्सिजन उपकरण के हाथ-पैर बांधकर छोड़ दिया जाता है। इस तरह विपरीत हालात से निपटने और जीवित रहने की क्षमता विकसित की जाती है।
सेचुरेशन डाइविंग: समुद्र की सतह से 35 मीटर नीचे करीब 20 मिनट तक रहने की क्षमता विकसित की जाती है।
डेथ क्रॉल: जांघों तक भरे कीचड़ में भागना होता है। कंधों पर 25 किग्रा का बोझ भी होता है। फिर 2.5 किमी की बाधा दौड़ का कोर्स होता है। जैसे-जैसे ट्रेनिंग बढ़ती है, कीचड़ का गाढ़ापन बढ़ता जाता है।
तैराकी: तैरने की इस तरह ट्रेनिंग दी जाती है कि ये कई किमी तक समुद्र की सतह के नीचे तैर सकते हैं।
हथियार: सेना में मौजूद हर तरह के हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। खुखरी से लेकर सबमशीन गन तक।
हाई एल्टीट्यूड लो ओपनिंग (हालो) जंप: 11 किमी की ऊंचाई से कूदने का अभ्यास करवाया जाता है। जमीन के पास आकर ही पैराशूट खोलना होता है।
हाई एल्टिट्यूड हाई ओपनिंग (हाहो) जंप: 8 किमी की ऊंचाई से कूदने के आठ सेकंड के भीतर पैराशूट खोलना होता है। यह ट्रेनिंग -40 डिग्री के तापमान पर दी जाती है।
कठिन ट्रेनिंग दी जाती है
- इनकी कठिन ट्रेनिंग का हिस्सा होता है ‘डेथ क्रॉल’ जिसमें जवान को जांघों तक भरी हुई कीचड़ में भागना होता है।
- इसके बाद HALO और HAHO नामक दो ट्रेनिंग को पूरा करना होता है।
- HALO (High Attitude Low Opening) में जमीन से 11 किलोमीटर ऊंचाई से कूदना होता है और पैराशूट जमीन के पास आकर खोलना होता है।
- जबकि HAHO (High Altitude High Opening) जंप में 8 किलोमीटर की ऊंचाई से कूदना होता है और कूदने के बाद 10 से 15 सेकंड के अंदर ही पैराशूट को खोलना होता है।
- HAHO जंप -40 डिग्री के जमा देने वाले तापमान पर होती है।
- इन कमांडों को विभिन्न उपकरणों, चाकू और धनुष चलाना, स्नाइपर राइफल्स चलाना,हथगोले चलाना और नंगे हाथों से लड़ने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।
- सबसे खास बात यह है कि इन्हें अपने फैमिली से छूपना पड़ता है कि वे MARCOS Commando हैं।
- इन्हें हर तरह के हथियार से ट्रेनिंग दी जाती है फिर चाहे वो चाकू हो, स्नाइपर राइफल हो, हैंडगन हों या सबमशीन गन हो।
- ये कमांडो हमेशा सार्वजनिक होने से बचते हैं।
- नौसेना के सीनियर अफसर का यह भी कहना है कि इनके परिवारवाले भी इस बात को नहीं जानते कि ये कमांडो हैं।
- मार्कोस की ज्यादातर ट्रेनिंग आईएनएस अभिमन्यू (INS Abhimanyu) में होती है, जो इनका आधार घर भी होता है।
- ट्रेनिंग के बाद भी इन्हें मित्र राष्ट्रों के साथ संयुक्त अभ्यास करते हुए अपनी क्षमता विकसित करनी होती है।
- इसमें काउंटर इंसर्जेंसी, एंटी-हाइजैकिंग, एंटी-पाइरेसी, क्लैंडेस्टाइन ऑपरेशंस, सर्विलांस एंड रिकोनेशन, एम्फीबियस ऑपरेशंस, अनकंफर्टेबल वारफेयर और होस्टेज रेस्क्यू की ट्रेनिंग भी शामिल है।
- MARCOS दुनिया भर के उन विशेष बलों में से एक हैं जो पूर्ण लड़ाकू भार के साथ समुद्र में गिराए जाने में सक्षम हैं।
- MARCOS को राजस्थान के डेजर्ट वारफेयर स्कूल, अरुणाचल प्रदेश के तवांग के पार्वत घटक स्कूल में हाई एल्टीट्यूड कमांडो कोर्स, सोनमर्ग में हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल (HAWS) और काउंटर इंसर्जेंसी और जंगल वारफेयर, मिजोरम स्कूल (CIJWS) में प्रशिक्षित किया जाता है।
अमेरिकी नेवी सील्स के साथ ट्रेनिंग
अमेरिकी सील्स कमांडो फोर्स और इंडियन मार्कोस फोर्स का आपस में गहरा रिश्ता है। दोनों देशों के बीच आपसी ट्रेनिंग का करार है। मार्कोस फोर्स का गठन नेवी सील्स की तर्ज पर किया गया है।